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Friday, August 26, 2016

Goddess Tulsi

पवित्रतम छोड़ - तुलसी

आपने ऊपर जो जलन्धर की कथा पढ़ी उनके अलावा हिन्दू शास्त्र 'देवी भागवत पुराण' के अनुसार दूसरी कथा का भी वर्णन किया गया हे।


हिन्दू शास्त्र 'देवी भागवत पुराण' के अनुसार तुलसी को हिन्दू देवी लक्ष्मी के रूप में माना जाता हे और वो धन की देवी कहलाती हे। वो बयान करता हे की भगवान विष्णु को तीन पत्निया थी,जिसमे माता लक्ष्मी,सरस्वति और गंगा थी। एक बार गंगा विष्णु के साथ में बैठी थी और कुछ बाते कर रही थी और ये सब सरस्वती देख रही थी और उसे वो अच्छा नहीं लगा और उसके कारनवश उसने गंगा को निचे घसीटा। वो देख के लक्ष्मी गंगा को बचाने के लिए दौड़ी। वो देख के सरस्वती ने लक्ष्मीजी को शाप दे दिया की वो पृथ्वी पर पौधा बन जाएं। गंगा और सरस्वती ने भी एक दूसरे को शाप दिया की वो दोनों नदी के रूप में पैदा हो। भगवान विष्णु ने लक्ष्मीजी को कहा की उनका थोड़ा सा हिस्सा ही पौधे में होगा और और बाकि उसके साथ रहेगा। और उसी समय के दौरान पृथ्वी पर राजा वृषध्वज (भगवान शिवजी का भक्त) ने उनके संरक्षक देवता को छोड़ के बाकि सारे देवतावो की पूजा पर प्रतिबन्ध लगा दिया। ये देख के उत्तेजि सूर्य देव ने उनको शाप दिया की लक्ष्मी उनको छोड़ के चली जाये। इसलिए भगवान शिव सूर्य जी का पीछा करते हुए दोनों भगवान विसगणु के शरन में आये,उसने कहा की काफी सालो बाद वृषध्वज के वंशज का विनाश होगा लेकिन वृषध्वज के पोते धर्मध्वज और कुशध्वज लक्ष्मीजी की उपासना करके फिर से शक्तिशाली बन जायेंगे। तब लक्ष्मीजी के वरदान स्वरूप तुलसी और वेदवती बनकर दोनों के घर पुत्री के रूप में जन्म लेते हे। तुलसी अपना सुख और सारी सम्पति उनको देकर बद्रीनाथ में भगवान विष्णु को पाने के लिए तपस्या करने हेतु चले जाते हे। उनकी तपस्या से भगवान ब्रम्हा प्रसन्न होकर उसको वरदान देते हे की उनका विवाह दानव राजा शंखाचुड के साथ होने से पहले भगवान विष्णु के साथ होगा।
सुदामा की जो भगवान कृष्णा के मित्र थे उसको मिले हुए शाप की बजह से वो दानव राजा शंखाचुड के रूप में जन्म लेते हे। शंखाचुडकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उनको विष्णु कवच का वरदान दिया था,और कोई भी उसे तोड़ नहीं सकता। शंखाचुड और तुलसी विवाह हो गया और उनकी ताकत और विष्णु कवच के कारन वो पुरे संसार में अपना आतंक फैलाने लगा। संसार को बचाने के हेतु भगवान शिव ने उनके साथ युद्ध का आह्वान किया। भगवान विष्णु ने शंखाचुड का रूप लेकर तुलसी की पवित्रता को नष्ट कर दिया।तुलसी की पवित्रता ख़त्म होने के कारन शंखाचुडका वध हुवा और सुदामा को मुक्ति मिली। तब भगवान विष्णु अपने स्वरुप में आकर तुलसी को पृथ्वी छोड़ कर फिर से लक्ष्मी (उनकी पत्नी) बनकर लौट आने को कहा। समय बीतने के बाद तुलसी का पार्थिव शरीर गन्दाकि नदी बना गया,और उनके बाल तुलसी का पौधा के रूप में परिवर्तित हो गया।

इनके अलावा और भी दो कथाये तुलसी के साथ जुडी हुई हे। इसका वर्णन जल्द ही अगली पोस्ट पर करूँगा। 

तो कुछ इस तरह की कथा का वर्णन हमारे वेदों एवं शास्त्र में किया गया हे।

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